सुनो!
भावनाएं
शब्दों से खेलने में नहीं
शब्दों को नए रंग-रूप में...
गढ़ने के लिए हो,
तो हमेशा
सृजन
से होगा निर्मित
भावों का
अथाह और अगाध
स्वरूप,..
और उसी स्वरूप में
जीवन की तमाम
संभावनाएं निहित होंगी,..
और
तब
निश्छल भावों का
समर्पण,..
हमेशा देगा
शब्दों को ही नहीं
बल्कि जीवन को भी
नव दशा और नव दिशा,
हां!!!
मैं गढूंगी
एक दिन
इन्ही शब्दों से
अपने समर्पित भावों का
अद्वितीय कीर्तिमान,..
प्रीति सुराना
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत लाजवाब भावपूर्ण रचना ...
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