महिलाओं की एक नई संस्था कई सालों से चल रही अनेक सामाजिक संस्थाओं पर भारी पड़ रहा था।
माधवी मन ही मन खुश थी आज भाग्य से उसे इस संस्था के संस्थापक से मिलने का स्वर्णिम अवसर मिला था। वह खुद भी कई कठिनाइयों के साथ कई सालों से महिलाओं की एक संस्था चला रही थी।
समय से थोड़ा विलंब से ही सही रामशंकर जी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में पहुंच गए ।
कार्यक्रम के बाद कुछ देर औपचारिक बातों के बीच माधवी सीधे सीधे पूछ बैठी। आदरणीय ये बताइये कि इतनी सारी महिलाओं को संगठित करके हर महीने इतने व्यवस्थित काम कैसे करवा पाते हैं। मुझे भी कुछ बताइये मैं अपनी संस्था को सुचारू रूप से चला सकूं।
एक छोटी सी मगर कड़वी बात "महिलाएं महिलाओं के सानिध्य में खुद काम नही करना चाहती। महिलाओं ने खुद ही पुरूष की सत्ता स्वीकार की है।"
इशारे समझ रही थी माधवी धीरे से एक सवाल और उछाला?
पर इतना पैसा, समय और लगन?
रमाशंकर जी ने कुटिलता से मुस्कुराकर कर कहा। प्रभावी व्यक्तित्व का पुरुष द्वारा महिलाओं से सब कुछ यंत्रवत करवाने का एकमात्र मंत्र
*"उसकी साड़ी तुम्हारी साड़ी से सफेद कैसे?"*
किसी ने आवाज़ दी "सर आपकी गाड़ी आ गई।"
औपचारिक अभिवादन के बाद वो चले गए पर माधवी जाने कब तक स्तब्ध बैठी रही एक कड़वी सच्चाई के साथ ।
प्रीति सुराना
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