मोक्ष नगर में ही होगा घर,
आठ कर्म को समझें मिलकर,
काम क्रोध मद सब हों वश में,
कर्मों का संवर जीवन भर ।1।
कर्मों का संवर जीवन भर,
जोर चले बस खुद के मन पर,
कर्तव्य कर्म का पूरा करना,
दृष्टि कभी न रखना फल पर ।2।
दृष्टि कभी न रखना फल पर,
जो पाओ भोगो सब हँसकर,
कर्मों के लेखे जोखों से,
कोई नही गया है बचकर ।3।
कोई नही गया है बचकर,
भवभ्रमण के चलते चक्कर,
चुकता सब करना होता है,
मुक्त कर्म ही करते कटकर ।4।
मुक्त कर्म ही करते कटकर,
पाप कटेंगे पीड़ा सहकर,
पुण्य कर्म भी होंगें तिरोहित ,
सारे सुख सागर में बहकर ।5।
सारे सुख सागर में बहकर,
या समतामय जीवन जीकर,
पाप पुण्य चुक जाएं सारे,
मिलना तय है मोक्ष की डगर ।6।
मिलना तय है मोक्ष की डगर,
जीना भाव सदा सम रखकर,
जीवन भी सुखमय बीतेगा,
सत्कर्मों से पुण्य कमाकर ।7।
सत्कर्मों से पुण्य कमाकर,
सब जीवों को सुख पहुंचाकर,
काम वही करना जीवन में,
जो भर जाये सुख की गागर ।8।
जो भर जाए सुख की गागर,
देना उस घट को ही सीकर,
श्रम का दान वहीं पर करना,
जो धरती दे अन्न उगाकर ।9।
जो धरती दे अन्न उगाकर,
उसकी माटी शीश लगाकर,
अपना जीवन पावन करना,
रिक्त उदर की क्षुधा मिटाकर ।10।
रिक्त उदर की क्षुधा मिटाकर,
प्यासे को जलपान कराकर,
मन को अनुपम सुख मिलता है,
देखो सूत्र यही अपनाकर ।11।
देखो सूत्र यही अपनाकर,
जीने दो सबको खुद जीकर,
मातपिता की सेवा करके,
पाओ मेवा सुख का जी भर ।12।
पाओ मेवा सुख का जी भर,
अहम नहीं पर करना इसपर,
पाप अहम से भी बढ़ता है,
सड़ता है सब संचित होकर ।13।
सड़ता है सब संचित होकर,
बीज कहीं दुष्कर्म का बोकर,
फल जब तक न कटेगा इनका,
बोझ बना रहता है अकसर ।14।
बोझ बना रहता है अकसर,
मन में बस जाता भय घर कर,
कदम कदम पर विचलित करता,
हर भय से मुक्ति है दुष्कर ।15।
हर भय से मुक्ति है दुष्कर,
पर मन में समता को गहकर,
भय को दूर भगा सकते हैं,
दूजों को साता पहुंचाकर ।16।
दूजों को साता पहुंचाकर,
दुखियों के दुख को बिसराकर,
अपने सुख औरों में बांटे,
तेरा मेरा भेद भुलाकर ।17।
तेरा मेरा भेद भुलाकर,
मनभेदी दीवार गिराकर,
भेद सभी तुम आज मिटा दो
मैं को मन से दूर हटाकर ।18।
मैं को मन से दूर हटाकर,
अंतर का अंतराय घटाकर,
मार्ग मुक्ति का ही बस चुनना,
अंतस का अंधकार मिटाकर ।19।
अंतस का अंधकार मिटाकर,
अज्ञान से आवरण उठाकर,
ऐसा कुछ पुरुषार्थ करें अब,
मन में ज्ञान प्रकाश जगाकर ।20।
मन में ज्ञान प्रकाश जगाकर,
और विकार सभी बतलाकर,
राह दिखाये कोई ऐसी,
साफ करे मन मैल धुलाकर ।21।
साफ करे मन मैल धुलाकर,
बदले के भी भाव मिटाकर,
मैत्री धर्म कर दें स्थापित,
मृदु वचनों का पाठ पढ़ाकर ।22।
मृदु वचनों का पाठ पढ़ाकर,
सब जीवों को मित्र बनाकर,
भार कर्म का करना है कम,
पुण्य छुपाकर पाप जताकर ।23।
पुण्य छुपाकर पाप जताकर,
पाप कर्म से कदम हटाकर,
नाम बिना सत्कर्म सभी हों,
पुण्य के पथ पर चलना डटकर ।24।
पुण्य के पथ पर चलना डटकर,
मोह कर्म से थोड़ा बचकर,
काट सकोगे कर्म की बेड़ी,
पीड़ा सब समता से सहकर ।25।
पीड़ा सब समता से सहकर,
दर्शन अपने अवगुण का कर,
दूर करें अपने दोषों को,
जो भी पाप किये जीवन भर ।26।
जो भी पाप किये जीवन भर,
मन से उनका आलोचन कर,
आत्मा को हल्का कर लेना
पुण्य पाप का पलड़ा सम कर ।27।
पुण्य पाप का पलड़ा सम कर,
है ये जीव अजीव समझकर,
संवर बंध निर्जरा व आश्रव,
समकित जीवन में अपनाकर ।28।
समकित जीवन में अपनाकर,
ज्ञान दर्शन के दोष मिटाकर,
वेदना सहित सब कुछ सहना,
मोह को मन से दूर भगाकर ।29।
मोह को मन से दूर भगाकर,
अंतराय का पाप चुकाकर,
नाम गोत्र से मुक्ति पाना,
सबसे क्षमायाचना भी कर ।30।
सबसे क्षमायाचना भी कर,
आयुष्य के पूरे होने पर,
आठो कर्मों के कटते ही,
मोक्ष नगर में ही होगा घर ।31।
प्रीति समकित सुराना
16/06/2917
(मौलिक स्वरचित)
वारासिवनी (मप्र)
9424765259
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