सुना था
सौंदर्य में
तिल का
बहुत महत्व होता है
मैं तो सुंदर भी नहीं
पर
मेरी आँखों की
गहराई में छुपा तिल
मेरी आँखों को
और गहरा करता है
ये तुम्ही ने बताया था
एक दिन,...
और तभी
घंटों आईने के सामने खड़ी
कभी आंखों की गहराई में
तुम्हारे लिए प्रेम
कभी सपनें
कभी शिकायतें
कभी आंसुओं के बीच
करती रही तुलना
आंख की पुतली के नीचे
इधर उधर डोलते तिल से,..
जिसे इससे पहले
मैंने कभी देखा ही नही था,..
और
आज जब
तुम
तृप्त हो प्रसिद्धि से,
खुश हो सफलता से,
व्यस्त हो ज़िंदगी में
घिरे हो भीड़ में,
तब मैं
खुद को
महसूस कर रही हूं
तुम्हारी
आंख के तिल सा,..
सुनो!
बहुत कोशिश की
आंसुओं में बहा दूँ तिल को
पर संभव ही नही हुआ,..
तुम्हें
खुद से बेखबर देखकर
सोचती हूं
क्या सचमुच मैं हूं भी
तुम्हारे जीवन का सौंदर्य
या ये भी
महज़ गलतफहमी है मेरी
कि हूँ मैं
तुम्हारी आंख का तिल,....
प्रीति सुराना
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