Tuesday, 6 June 2017

मौन की दीवार

मौन की दीवार

         तीन तीन बेटियां पैदा कर रखी है। घर मे घुसते ही खर्चों की फेहरिश्त गिनाने लगती हो। और बाहर निकलते ही मोहल्ले वालों के ताने सुनने पड़ते हैं सो अलग। मेरे सामने तो चुप ही रहा करो।
          सिलाई करके तीन बेटियों को पालना और आने वाली तकलीफों का जिक्र तक न करना। रोहन अपनी सारी कमाई जुएं और शराब में उड़ा देता। उससे कहा एक एक शब्द पलट कर उसी पर कोड़ों की तरह पड़ता। बेटियों को पढ़ाना था इसलिए धीरे धीरे मौन रहना सीख लिया।
          सालों बीत गए एक एक कर तीनो बेटियों को विदा किया। घर मे दो ही प्राणी। शराब ने रोहन को और चिंता और श्रम ने स्मृति को यूं भी कमजोर कर दिया था।
स्मृति के सीने में पिछले कुछ दिनों से दर्द बढ़ता ही जा रहा था पर कलह के डर से बताने की हिम्मत नही जुटा पाई।
           आज सुबह रोहन को समय पर चाय नही मिली तो चीखता हुआ सा कमरे में दाखिल हुआ कि उठोगी भी या बेटियों के जाते ही घर मे रसोई भी बंद हो गई। कोई प्रतिक्रिया न पाकर फिर बोला कुछ कहोगी भी या,.. ये कहते हुए बिस्तर पर औंधी लेटी एक हाथ से सीने को दबाए जबरदस्ती होंठ भींचे पड़ी स्मृति पर नज़र पड़ी तो रोहन स्तब्ध वहीं बैठ गया ।
        ऐसा लग रहा था मानो मौन न टूट जाए इसलिए दर्द की चीख भी होंठो पर न आने दी और आंखों से प्राण निकल गए हों।
            बेटियां दामाद रिश्तेदार आए अर्थी उठी और सब अपनी दुनिया मे लौट गए। बस अकेला रह गया रोहन अपनी ही बनाई मौन की दीवारों के बीच।

प्रीति सुराना

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