Wednesday, 21 June 2017

हासिल

हां!!!
आज
घनघोर घटा छाई
अवसाद की,
तेज़ बिजलियां कड़की
क्रोध की,
जोर जोर से गरजे बादल
अंतर्द्वंद के,...
और तभी
चलने लगी नम हवाएं
विवेक की,...

घटाओं का गहरापन,
बिजली की भयावहता,
गर्जन का शोर,
नम हवाओं का साथ पाकर
सिमट आए एक जगह
फिर फूट पड़ा
सब्र का बांध,..
और बरस पड़ी
अवसाद की सारी घटाएं
देर तक यूँही
हवाओं के कांधे पर सिर रखकर,...

फिर हुआ
मौसम कुछ साफ,
पलकों पर ख्वाब कुछ
अब भी अटके पड़े हैं कोरों में,..
आंखें मूंदे फिर सहेजना होगा इन्हें,..
रोपना है
अभी-अभी
भीगे मन के आंगन में
तभी तो होगी
*हासिल*
अच्छी फसल उम्मीदों की,..

जीवनयापन के लिए
रोजी रोटी है
मेरी ये 'उम्मीदें',....!!!!

प्रीति सुराना

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