Monday 19 June 2017

पीड़ा का घर

मन चिंतन में आज पड़ा है
क्रोध हठीला बीच अड़ा है

धीरज धरकर रह लेते हैं
यह अनुशासन बहुत कड़ा है

विषय विचार पड़े हैं बिखरे
अहम वहम से आज लड़ा है

किसपर सोचूं किसको बोलूं
यक्ष प्रश्न आ समक्ष खड़ा है

जीवन खेल नही सौदा है
सुख दुख भी तो साथ जड़ा है

मोल नही भावों का कोई
पास यही अनमोल घड़ा है

सोच रही क्या रख लूं इसमें
पीड़ा का घर बहुत बड़ा है

प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment