मन चिंतन में आज पड़ा है
क्रोध हठीला बीच अड़ा है
धीरज धरकर रह लेते हैं
यह अनुशासन बहुत कड़ा है
विषय विचार पड़े हैं बिखरे
अहम वहम से आज लड़ा है
किसपर सोचूं किसको बोलूं
यक्ष प्रश्न आ समक्ष खड़ा है
जीवन खेल नही सौदा है
सुख दुख भी तो साथ जड़ा है
मोल नही भावों का कोई
पास यही अनमोल घड़ा है
सोच रही क्या रख लूं इसमें
पीड़ा का घर बहुत बड़ा है
प्रीति सुराना
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