Sunday, 11 June 2017

सुधर गया कैसे

टूटकर यूँ बिखर गया कैसे।
बेवजह वो बिफ़र गया कैसे।

डूब कर ही रहा नज़र में जो,
वो नज़र से उतर गया कैसे।

कहकर गया कभी न लौटूंगा
राह में फिर ठहर गया कैसे।

जोश में की बड़ी बड़ी बातें,
बात से फिर मुकर गया कैसे।

शहर से थी शिकायतें जिसको
भूख से डर शहर गया कैसे।

जो डरा रात भर जुगनुओं से,
बन सितारा निखर गया कैसे।

प्रीत कहते रहे बुरा है वो
यूँ अचानक सुधर गया कैसे।

प्रीति सुराना

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