Tuesday 13 June 2017

खुशियों के दीपक

'खुशियों के दीपक'

          विधवा लक्ष्मी ने सालों जिस शाला में सफाई का काम किया और बदले में दोनों बेटों को शिक्षा दिलवाई उस शाला में आज भी उसे बहुत सम्मान मिलता था।
         आज सुबह सुबह लक्ष्मी सीधे हेडमास्टर जी के पास पहुंची और कहा साहब छोटे की चिट्ठी पढ़ दो न सुबह से शाला खुलने की राह देख रही हूं।
हेडमास्टर जी ने पत्र खोला और पढ़ना शुरू किया।
माँ,
  चरण स्पर्श
दो साल से घर नही आया, इस बार अपने ही शहर में पुलिस अधीक्षक बनकर आ रहा रहा हूं और साथ ही अपने शहीद भाई की स्मृति में प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र शुरू करने की अनुमति भी लेकर आ रहा हूँ। ताकि मुझे पढ़ाने वाली माँ मेरा लिखा पत्र खुद पढ़ सके।
       चिंता मत कर मां अब तो तेरा पोता भी तुझे ककहरा सिखाने लायक हो गया है। जल्दी ही तेरी बहु और पोते सहित तेरे पास आ रहा हूं।
                         देशभक्त मां का बेटा
                              तेरा छोटू
         भर्राए गले से हेडमास्टर जी ने पत्र पढ़ा और लक्ष्मी के हाथ में थमाकर हाथ जोड़ लिए और कहा लक्ष्मी तू सिर्फ लक्ष्मी नही साक्षात सरस्वती भी है। तुझ जैसी माताओं ने कुर्बानियां दी इसलिए मानवता अब तक जिंदा है। लक्ष्मी ने पल्लू से आंसू पोंछे और जुट गई बेटे-बहु और पोते की अगवानी में।
         सालों बाद दीवाली के पहले ही लक्ष्मी की देहरी पर खुशियों के दीपक जगमगा रहे थे।

प्रीति सुराना

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