नाव का धर्म
आज सीए फाइनल्स का रिजल्ट आया है। बारह साल से जतिन सर सीए फाइनल पास नही कर पाए जबकि इस कोचिंग से पढ़कर आज तक सैकड़ों की तादाद में सीए बन गए जो आए दिन आकर सर के चरण स्पर्श करके जाते हैं ।
समय होते ही जतिन सर की क्लास शुरू हुई। अब भी कानाफूसी चालू थी और सर के प्रति संवेदना भी चेहरे से झलक रही थी। सर ने आज आते ही किताब उठाने की बजाय एक सवाल किया बच्चों से:-
यदि आपको नदी के पार जाना है और तैरना नही आता तो आप क्या करेंगे?
अ. इरादा बदल देंगे
ब. तैरना सीखेंगे
स. नाव का प्रयोग करेंगे।
द. बिना सीखे कोशिश करेंगे चाहे डूब जाएं।
लगभग सभी ने नाव वाला विकल्प चुना।
अब क्लास में सन्नाटा छाया था। जतिन सर ने बोलना शुरू किया। नाव खुद तैरना नही जानती उस नाव को कैसे चलाना ये सिर्फ नाविक जानता है ।
जाने के दो ही विकल्प हैं तैरना आता हो या खुद तैरना सीख लो या फिर नाविक और नाव पर भरोसा करके पार चले जाओ।
ये इस्टीट्यूट एक नाव है जिसका धर्म है आपको पार तक छोड़ना और मैं वो नाविक जो खुद भी रोज किनारे तक साथ जाता हूँ पर तैरना सीखने के लिए मैं भी प्रयासरत हूँ।
सीए बनना मेरा लक्ष्य नही, सीए की परीक्षा में मैं जिस दिन पास भी हो गया तो ये नाविक अपने तैराक यानि अच्छा प्रशिक्षक होने का प्रमाणपत्र हासिल कर लेगा पर इस नाविक की सहायता से नाव का धर्म नाव ही निभाएगी।
इस शिक्षा के मंदिर को नाव बनकर अपना फर्ज निभाने दीजिये, आप सबको अपने अपने किनारे पहुंचा पाया तो नाव के साथ मुझ नाविक का धर्म भी पूरा होगा।
पूरी क्लास नतमस्तक हो भावपूर्ण नमन कर रही थी अपनी नाव और नाविक की धर्म परायणता को।
प्रीति सुराना
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