Monday 5 June 2017

उबलते नीर

         उबलते नीर

             आज बहुत मुश्किल से ममता ने खुद को एक दृढ़ निश्चय के साथ संभाला और उठ खड़ी हुई। ये निर्णय लेने में उसे सालों लग गए। पर आज नही डिगेगी सोच लिया था उसने।
        ममता के भीतर ही भीतर अंतर्द्वंद सा चल रहा था। 21 साल के वैवाहिक जीवन में सिर्फ दिया ही दिया और इसी घर मे मुझे भावनात्मक प्रताड़ना और ऐशो आराम की फरमाइशों के साथ समीर को कभी भी ये खयाल नही आया कि मैंने सहने से या उसकी जिम्मेदारियां उठाने से इनकार कर दिया या मुझे कुछ हो गया या मैं घर से चली गई तो महरी से महाजन तक और बच्चों से समाज तक यहां तक कि आटे से दाल तक कुछ भी नही संभाल पाएगा। समाज को खोखली खुशहाली का प्रदर्शन कब तक???
           अब तक अपने सारे सर्टिफिकेट, और अपनी नौकरी से जुड़े सारे कागजात और रोजमर्रा की जरूरत के सामान पैक कर चुकी थी। दोनों ही बच्चे जो हॉस्टल में पढ़ रहे उन्हें अपना नया कांटेक्ट नम्बर दे दिया क्योंकि मातृत्व की जिम्मेदारी से नही भागना था उसे। मकान और किराने की छोटी सी दुकान समीर के नाम कर बिना कोई हिस्सा मांगे तलाक के पेपर पर दस्तखत किए।
          सामान उठाकर एक नज़र सोते हुए समीर और सिराहने रखे खत व तलाक के पेपर पर डाली और घर से निकल पड़ी । आक्रोश का ताप इतना बढ़ा कि आंसू मानो उबल पड़े पर आज फफोलों की परवाह नही की क्योंकि इस उबलते नीर को रोककर कमजोर नही होना चाहती थी।
प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment