Sunday, 4 June 2017

किससे कहते?

किससे कहते गम जीवन के,
घाव दिखाते किसको मन के।

कैसे लाज बचाएँ अपनी,
बैरी लोग सभी निरधन के।

चादर भी पैबंदों वाली
भोगे निज घर दुख कानन के।

जिसने लाज बचाई तन की,
बस ऋणी हम उस दामन के।

मौसम जैसा हाल जिया का,
बरसे बादल बिन सावन के।

यूं तो भीड़ बहुत है जग में,
सूने कोने घर आंगन के।

मुझको न मिले पर बहुत सुने
कुछ एक किस्से अपनेपन के।

मन की चिड़िया उड़ना चाहे,
सपने देखे नील गगन के।

कैसे हो पूरे अब सपने,
'प्रीत' अधूरी बिन परिजन के।

प्रीति सुराना

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