बौनी प्रीत
काजल के हाथ में ग्लूकोज़ की बोतल लगी हुई थी। जब मैं पहुंची कमरे में अकेली आंखें बंद किये लेटी काजल की आंखों के कोरों से अनवरत बह रहे आंसू देखकर मेरा मन पसीजने लगा। मीनल और रोहन अभी इतने छोटे हैं कि ककहरा भी ठीक से सीखा नही है अभी। मयंक का कामकाज बहुत ही साधारण परिस्थिति का है, कि काम छोड़ दे तो कैंसर जैसी बीमारी का इलाज कैसे करवाए। इसलिए खाली समय मे मैं काजल के पास आ जाती हूँ।
"दीदी मेरे पास बैठो"।
दिल चीर गई उसकी दर्द भरी पुकार। मैं पास जाकर बैठी उसके आंसू पोंछे और उसका दूसरा हाथ अपने हाथों में लेकर उसके पास बैठ गई। कीमो के साइड इफ़ेक्ट्स के कारण उसकी हालत बहुत खराब थी। टूटती हुई सी आवाज़ में बोली " दीदी आज बह जाने दो मन का सारा दर्द, मत पोंछो मेरे आंसू क्योंकि संभलना है मुझे रोहन और मीनल के लिए। मेरा जाना मयंक भी अफोर्ड नही करता जीवनसाथी ही नही उसकी आजीविका के साधन भी आधे हो जाएंगे। मेरे बच्चों के भविष्य का सवाल है। ठीक तो मुझे होना ही है।"
बोलते बोलते हांफने लगी काजल तो थोड़ी देर कोरों से आंसू ढलकाती मौन रही।
कुछ देर बाद कुछ निर्णयात्मक लहजे में बोली- "सुनो दीदी तुम जानती हो आज मुझे सबसे ज्यादा जरूरत थी रौनक की। कोई आर्थिक मदद या रिश्ते का नाम नही मांगा था, दोस्ती ही नही प्यार और विश्वास था वो मेरा, मेरे हर सुख का बचपन से साक्षी भी और साथी भी। मेरी बीमारी का सुनकर उसकी तमाम समस्याएं अचानक इतनी बढ़ गई कि मेरा हाल जानने की भी जरूरत नही समझी।
वैसे तो हम हमेशा एक फोन कॉल की दूरी पर ही थे पर फ़ोन कॉल सुनाई न दे इसलिए ब्लॉक कर रखा है अब जब तुम मेरे लिए प्रार्थना करो न तब स्वास्थ्य लाभ से ज्यादा मन की ताकत मांगना।"
बहुत थक गई थी काजल ये सब कहते हुए। उसे सुलाकर पास ही पड़ी उसकी रिपोर्ट्स देखकर सोचने लगी थोड़ी हिम्मत रखी इसने तो जीत जाएगी अपने मन को मार कर अपनी जिंदगी की जंग।
असमंजस में हूँ इसे जीत कहूँ या हार??
सिर्फ सुख के साथी रौनक के स्वार्थ के आगे सचमुच आज काजल की निस्वार्थ दोस्ती, अपनापन, विश्वास, रिश्ता या प्रीत बौनी लगी।
प्रीति सुराना
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