Wednesday 7 June 2017

दर्द का उत्कर्ष

*दर्द का उत्कर्ष*

        मैं बैंक में कार्यरत हूँ और पतिदेव की स्टेशनरी की दुकान। दुकान में कविता और सविता दो बहनें पिछले कुछ महीनों से काम करती थी।
           आज घर लौटी तो पता चला कविता भाग गई। पहले तो मैं घबराई फिर अपने पति की ओर देखा, दोनों ने निर्णय लिया कि पुलिस को खबर कर दें।
        शहर में अच्छी जान पहचान और साख का परिणाम था कि 2 ही घंटे में कविता उस लड़के के साथ पकड़ ली गई। उन्हें सीधा हमारे घर ही लाया गया। दोनों बालिग थे इसलिए मंदिर में शादी कर ली थी।
         मैंने कविता से पूछताछ शुरू की। पर वो रोये ही जा रही थी कुछ बताने की हालत में थी ही नही और उस लड़के से बात करने का मन हम दोनों का ही नही था क्योंकि हम मान रहे थे कि उसी ने लड़की को बहकाया होगा।
         जब कविता कुछ न बोली तब मैंने सविता से प्यार से पूछा तुझे पता था इस बारे में। पहले वो झिझकी फिर जो उसने बताया उससे तो पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई।
         सविता बोली "आपके यहाँ से मिली पूरी तनख्वाह माँ बाप शराब में उड़ा देते हैं। और हम जो आपके घर खाते हैं उसके अलावा घर का खाना उसी दिन मिलता है जब कोई सेठ हमारे साथ रात बिताकर मुँह अंधेरे घर छोड़ जाता है। मना करने या रोने पर मां बाप जलती लकड़ी से मारते हैं। अब हद हो गई दीदी कविता ने भागकर जिस लड़के से शादी की वो इसे बहुत प्रेम करता है और राईस मिल में काम करता है वहीं ये भी काम कर लेगी पर इज्जत से जीएगी मेरे पास तो मरने के अलावा कोई चारा नही है।"
              मैं निःशब्द, पति स्तब्ध और पुलिस हतप्रभ।
        *दर्द का उत्कर्ष* सीना चीर गया और मैंने कसकर सविता को अपनी बेटी की तरह बाहों में भींच लिया।
            पुलिस ने उसके माता पिता को जेल में डाल दिया, कविता सुखी है और सविता ने मेरे घर रहते हुए महिला सुरक्षा  की दिशा में काम शुरू कर दिया है।

प्रीति सुराना

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