बातों की समझो गहराई।
सपनों ने ली थी अंगड़ाई,
कोई मौसम गुजरा जिसने,
जीवन की गलियां महकाई।
फिर छनकी पैरों में पायल,
हौले से चूड़ी खनकाई।
कहती किससे मन की बतियाँ,
नजर झुकाकर बस सकुचाई।
हाल बताती दिल का कैसे,
धड़कन की सरगम सुनवाई।
सखियों ने छेड़ा जब मिलकर,
बोली करवा दो कुड़माई।
बाबुल तक जा पहुंची बातें,
फिर बजवाई थी शहनाई।
साथ मिला मुझको साजन का,
और सुहागन मैं कहलाई।
पर विरहन दिन कैसे भूलूं,
यादों की चलती पुरवाई।
भारत माता की जय कहकर,
जब सरहद पर जान लुटाई।
पास तुम्हारा अंश नही हैं,
कौन करे इसकी भरपाई।
प्रीति सुराना
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