बहते आंसू में धोए सपने।
आंखों ने आज भिगोये सपने।
पूरे हो जाने की आशा में,
अपना ही सब कुछ खोए सपने।
दुनिया के डर से थे छुप छुपकर,
मन के कोने में सोए सपने।
कैसे पनपेंगे ये कब सोचा
मरुथल में हमनें बोए सपने।
'प्रीत' नही हो पाई जब पूरी,
टूटे तो बेहद रोए सपने।
प्रीति सुराना
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