Friday, 5 May 2017

खामोशी की चीखें

सुनो!
अब
टूट ही गया
ये भ्रम
कि खामोशी भी
समझते हो तुम मेरी,..
तड़पती
पड़ी रही
आज
मेरी खामोशी की चीखें
सन्नाटे में
अनसुनी ही
भीड़ में मेरी आवाज की तरह,..

प्रीति सुराना

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