चाह मिलन की दिल मे कितनी
कैसे बतलाऊँ।
खुद से करती बतियाँ वतियाँ
खुद ही शरमाऊं।
राह तकूँ तुम कब आओगे
साजन बतलाओ,..
कैसे मन को धीर बंधाऊँ
ये भी समझाओ,..
बैठ अकेले में गुमसुम सी
मन में घबराऊँ,..
चाह मिलन की दिल मे कितनी
कैसे बतलाऊँ।
खुद से करती बतियाँ वतियाँ
खुद ही शरमाऊं।
आशा का दामन थाम लिया
जब जीना ही है,..
विरह सहूँ रोकर या हँसकर
पर मिलना ही है ,..
सोच रही मिलने आओ तो
मैं भी तड़पाऊं,..
चाह मिलन की दिल मे कितनी
कैसे बतलाऊँ।
खुद से करती बतियाँ वतियाँ
खुद ही शरमाऊं।।
छोड़ दिये भय दुनिया के जो
तुमसे दूर करे,..
तोड़ दिये बंधन सारे अब
जो मजबूर करे,..
इक प्रीत भरा नाता तुझसे
जिसपर इठलाऊँ,..
चाह मिलन की दिल मे कितनी
कैसे बतलाऊँ।
खुद से करती बतियाँ वतियाँ
खुद ही शरमाऊं।।
प्रीति सुराना
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