आइये करें आज विचार,
कैसे मिटे मन का विकार,
बना रहे रिश्तों का माधुर्य,
प्रेम का हो क्या आधार??
कभी देखा कोई ऐसा पेड़ जिसकी जड़ें न हो ? कभी देखा ऐसा कोई भवन जिसकी नींव न हो? विज्ञान की ऐसी कोई खोज जिसमें कल्पना न हो? ऐसा कोई रिश्ता जिसमें कोई भावना न हो? ऐसा कोई धर्म जिसमे आस्था न हो ? नही न??
तात्पर्य ये कि हर बात, हर चीज, हर सफलता, हर रिश्ता, हर धर्म का कोई न कोई आधार/मूल/कारण होता है।
एक बार इस तरह सोचकर देखिए, अगर जड़ को नुकसान हो तो पेड़ पनपेगा? नीव कमजोर हो तो इमारत बुलंद होगी ? कल्पना या अनुमान लगाए बिना विज्ञान कोई नई खोज कर पाएगा? भावनात्मक जुड़ाव के बिना कोई रिश्ता निभ पाएगा? आस्था डगमगाई तो धर्म टिक पाएगा??
शायद नही,...
मुझे लगता है,... प्रेम एक शाश्वत अनुभूति है अंतर्मन की, जिसका आधार 'विश्वास'। विश्वास की परिणीति 'समर्पण' जो प्रेम को सार्थक करता है। जहां ठेस विश्वास को पहुंची या शक का कीड़ा पनप गया रिश्तों के धागों का उलझना तय है। और बहुत नाजुक सी डोर होती है प्रेम की,.. सुलझाते सुलझाते अकसर टूट जाती है। और मनुष्य एक सामाजिक प्राणी जिसका अकेले जीना संभव नही, रिश्तों में जोड़ लगाता ही चला जाता है। पर जहाँ एक गांठ लगी रिश्ते का मौलिक स्वरूप खत्म,...।
प्रेम कभी नही मरता इसलिए रिश्ते में प्रेम जस का तस बना रहता है। अपेक्षाएं रिश्ते की जरूरत है वो भी बनी रहती है कम या ज्यादा परिस्थितियों के अनुरूप । पर विश्वास टूटकर जब जुड़ता है तो पूरा कभी नही होता। विश्वास में लगी चोट के बाद समर्पण तन-मन-धन से हो सकता है पर आत्मा में कहीं एक असुरक्षा का भाव घर कर ही जाता है। और जहाँ विश्वास और समर्पण कमजोर हुए वहाँ प्रेम का पूर्ववत स्वरूप लौट पाना संभव ही नही।
इसी बात को चरितार्थ करता है रहीम का ये दोहा👇
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
सोचिये एक बार कहीं जाने अनजाने हम अपने रिश्तों को तोलमोल कर कमजोर तो नही कर रहे। यदि प्रेम है तो विश्वास पूरा हो क्योंकि मेरा मानना है कि विश्वास कभी कम या ज्यादा नही होता। विश्वास की कमी का अर्थ अविश्वास ही होता है और कुछ भी नही। समर्पण की अपेक्षा है या समर्पित होने का भाव मन मे है तो शर्त सिर्फ एक कि विश्वास पूरा हो। टूटे विश्वास को जोड़कर प्रेम को बनाए रखना जोड़ वाले धागे की तरह ही रिश्तों को रफ़ू करने के काम तो आएगा पर सौदर्य और मजबूती खो बैठेगा।
भरोसा पूरा हो तो मजबूत आधार होगा।
सच्चे प्रेम का हर सपना साकार होगा।
संशय प्रश्न और जिरह की गिरहें मत रखना,
रिश्ते की पोशाक का सुंदर आकार होगा।
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment