तुम्हारे लिए रिश्ता एक चीज़ थी,
समय समय पर उपयोग होता रहा,
चीजों की उपयोगिता और ह्रास के नियमानुसार
उसकी कीमत कम होती गई,..
और एक समय बाद
पूरी तरह ह्रास के बाद
उपयोगिता बिल्कुल खत्म,...
और तब रिश्ता
जीवन के बड़े से मकान के
किसी कोने में पड़ा
वो फालतू सामान बना वो रिश्ता
बंद कर दिया गया
घर के कबाड़खाने में
जिसे अनुकूल समय आने पर
पीछे के दरवाज़े से कर किया जाएगा बाहर,..
सुना है
बड़े लोग कबाड़ बेचते नही
सड़क किनारे डाल देते हैं
ताकि
कोई कबाड़ी
या कचरा बीनने वाला उठा ले जाए,..
फिर बिकना,
तोड़कर उपयोगी हिस्सा निकाला जाना,
और पूर्णतः अनुपयोगी होने पर जलाया जाना,..
चीजों से सामान तक
सामान से कबाड़ तक का जीवन
फिर
मौत से पहले ही शव परीक्षण
और
हृदय विदारक मौत
एक रिश्ते की
जिसकी आत्मा
मुक्ति की चाह में
अब भी भटक रही है कहीं,... प्रीति सुराना
दिनांक 22/05/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
दिनांक 22/05/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
सुन्दर।
ReplyDeleteआदरणीय ,अच्छी लेखनी ,सुन्दर रचना ! मानवीय मूल्यों को तोलती , रिश्तों के कटु आयाम को प्रदर्शित करती आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteकोई कबाड़ी
या कचरा बीनने वाला उठा ले जाए,..
फिर बिकना,
तोड़कर उपयोगी हिस्सा निकाला जाना,
और पूर्णतः अनुपयोगी होने पर जलाया जाना,..
बहुत खूब.....