सुनो!
तुम शिखर पर हो
या तुम ही शिखर हो
और तुम मुझे बेहद पसंद हो,
पर नही पहुंचना मुझे तुम तक
क्योंकि
तुम झुकते या रुकते नही,
ऐसा नही कि मुझमें कोई अहम् है
या
तुम श्रेष्ठ नही इस बात का वहम् है,..
नहीं मैं बिल्कुल भी नही डरती ऊंचाई से
और
न डरती हूं वहां तक पहुंचने की चढ़ाई से,
पर
मुझे लगता है डर
ऊपर चढ़ते हुए
नीचे रह गए अपनों की गुहार से
आगे बढ़ते हुए
पीछे से लौट आने की आत्मीय पुकार से,...
मुझे लगता है डर
शिखर पर पहुंचकर
या
शिखर बनकर
नुकीली सी सीमित जगह पर
अपनों के बिना डसने वाली तन्हाई से,..
अपनों के लिए तड़प लिए
नीचे देखने पर
भयावह, निगल जाने वाली गहरी खाई से,...
हां!!
करता है मुझे शिखर
बार बार आकर्षित
पर शिखर के आधार पर बसे
मेरे अपनों का है मुझपर
मेरी सफलता से ज्यादा अधिकार
मैं कायर नही हूं जो बहाने करुं
बस मुझे है
मेरे सपनों से ज्यादा *अपनो से प्यार* ,..
प्रीति सुराना
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