Saturday, 20 May 2017

"तलाक, तलाक, तलाक"

हाँ !
मुझे जीने हैं रिश्ते
मुझे चाहिए प्रेम
मुझे जरूरत है भरोसे की
मुझे चाहिए अपनों का साथ

शिकायत है दाता से
क्यूं सिखाया सिर्फ
समर्पण???

नही होती सहन गलत बातें
नही सुने जाते ताने
नही मानी जाती मुझसे हार
नही कर सकती मैं पलायन

शिकायत है जन्मदाता से
क्यूं दी मुझे
सही गलत की समझ??

चुभती है बातें
दुखते हैं घाव
टीसती हैं खरोंचे
जलती है चोटें

शिकायत है विधाता से
क्यूं बनाया मुझे इतना
संवेदनशील??

थक गई अब
समझदारी संवेदनशीलता और समर्पण के साथ
निभाते-निभाते
रिश्तेदारी, जिम्मेदारी और दुनियादारी

सुना है
तीन तलाक पर फैसला आने को है
इससे पहले कि ख़ारिज हों
ये तीन शब्दों का मामला

आज मैं चाहती हूं छुटकारा
ऐसे तमाम बंधनो से
बेटी,पत्नी,बहू, माँ,दोस्त, सखी, प्रेमिका की
पवित्र भूमिका से नही,..

पर इनसे जुड़े अनावश्यक दबाव
और भावनात्मक बंधनो से चाहिए
मुझे भी आज
"तलाक, तलाक, तलाक"

प्रीति सुराना

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