हां!
सुना था
बचपन से
कुछ पाना हो
तो
कुछ खोना ही पड़ता है,..
इसी सत्य को
स्वीकार कर
अपना हौसला साथ ले
निकल पड़ी
अनजान डगर पर
कुछ पाने को,...
और अब
याद ही नही
पाना क्या था??
क्या चाहिए था??
क्या मिला ?
क्या पाया ?
और
खोते-खोते
खुद को खो दिया,
बस यही सोचकर
अभी-अभी
ये दिल रो दिया,..
प्रीति सुराना
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