विषय:- गोकुल-वृंदावन-बरसाना-मथुरा
न तो मैं बरसाने की राधा,न है तू मथुरा का वासी।
न यमुना के तीर बसे हम, वृंदावन या गोकुल के वासी।।
प्रेम है राधाकृष्ण सरीखा,
और समर्पण भी मीरा सा,
हौले हौले पीना है जिसको,
वो विरह वेदना लगे गरल सी।
न तो मैं बरसाने की राधा,न है तू मथुरा का वासी।
हर गोपी के पास है कान्हा,
जिसको अपना जीवन माना,
फिर भी हंसकर रास रचाती
सुख ये भी तो है आभासी।
न तो मैं बरसाने की राधा,न है तू मथुरा का वासी।
मैंने भी स्वीकार किया अब
तुझमें ही ये मन रमता है
क्या करना अब तीरथ सारे
तुझमें मथुरा वृंदावन काशी।
न तो मैं बरसाने की राधा,न है तू मथुरा का वासी।
गोपियाँ मीरा राधा सबने
प्रेम आस्था और भक्ति की
अमरप्रेम के अमिट उदाहरण
बने समर्पण के परिभाषी।
न तो मैं बरसाने की राधा,न है तू मथुरा का वासी।
बस इतना ही स्वप्न संजोया,
ये मन तेरी ख़ातिर रोया,
तू पाए खुशियां जीवनभर,
प्रेम मेरा हो तभी अविनाशी।
न तो मैं बरसाने की राधा,न है तू मथुरा का वासी।
न यमुना के तीर बसे हम,वृंदावन या गोकुल के वासी।।
प्रीति सुराना
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