हाँ !
मानती हूं मैं
प्रेम लौटता है
हमेशा बढ़कर लौटता है
पर कभी सोचा
बीता हुआ समय
कभी नही लौटता
टीसते हुए घावों के दर्द
स्नेहलेप की तभी अपेक्षा करता है
है जब दर्द असहनीय हो,..
घाव के सूखने के बाद
सहलाना सुखद भले ही हो
पर संक्रमण का
भय बना रहता है,..
संक्रमित होने के बाद घाव नासूर बनता है
जैसे बार बार कुरेदे जाने पर,..
माना जग प्रतिध्वनि की तरह
सबकुछ लौटाता है,
पर सब कुछ लौटकर आना
सार्थक तभी
जब सबसे अधिक
आवश्यकता हो,..
और
कब रही मेरी ये कामना
प्रेम के बदले
तुम रूठो,
दूर जाओ,
लौट आओ,
मैंने तो हमेशा चाहा
तुम लड़ो
झगड़ो
पर साथ रहो
देह में आत्मा की तरह,..
जो बिछड़े तो परिणाम
सिर्फ "मृत्यु"
प्रीति सुराना
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