Thursday 30 March 2017

संभावनाएं अभी बाकी है,...

संभावनाएं अभी बाकी है,...   
     मनीष की आदत थी रोज सुबह उठते ही एफ एम चालू करके ही अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं। उनके और शालू के बीच पसरी संवादहीनता से घर में फैला सन्नाटा और मन में बिखरते रिश्तों की पीड़ा के बीच कभी कभी कोई ऐसा गीत बज उठता मानो दोनों की नज़र भर मिल जाए तो बात हो जाए।
      बच्चों के हॉस्टल जाने के बाद बड़े से घर में वो दो ही लोग तो थे पर बीस साल पहले शुरू किया हुआ सफर आज इस मोड़ पर था कि चहकते रहने वाले तोता मैना मानो अपने स्वर खो बैठे हों। समय के साथ दोनों परिपक्व हुए तो सोच ने भी अलग अलग राह पकड़ ली प्रेम विवाह के सपने जब सच के धरातल पर उतरे तो कब क़दमों ने दिशाएं बदल ली पता ही नहीं चला।
     शालू यही सब सोच रही थी कि एफएम पर साहिर लुधयानवी का गीत बज उठा।  'चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों,...।'
        मनीष नहा कर निकले ही थे सामने पड़ते ही दोनों की नज़र मिली मानो गीत के बोल मुखरित हो उठे हों। मन ही मन शालू की तरह ही मनीष भी सोचने लगे कि आज बात कर ही ली जाए। सोचते सोचते गीत के अंतिम बंद तक पहुँच गए,..
तारूफ रोग हो जाये, तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लूक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा,...
          दोनों के भीतर एक द्वन्द चल रहा था कि क्या दोनों को गीत के इस अंतिम बंद को अमल में लाते हुए एक दूजे का बरसों का साथ छोड़ देना चाहिए। प्रेम विवाह की काल्पनिक दुनिया जब जिम्मेदारियों की वास्तविकता से रूबरू होती है तो क्या दिल के रिश्ते अपनी प्रासंगिकता खो बैठते हैं,..?
      क्या जीवन के उस मोड़ पर मनीष और शालू को सोच न बदल कर राह बदलने का निर्णय सही कदम होगा?
शायद नहीं,.. एक रिश्ते से जुड़े तमाम रिश्तों के बिखराव का डर रिश्ते के महत्व और प्रासंगिकता को परिभाषित करता है।
         एक बार फिर दोनों की नज़र टकराई। अचानक मनीष एफ एम बंद करता हुआ बोला शालू आज चाय के साथ पकौड़े बना लो साथ नाश्ता करेंगे।
सन्नाटा टूटते ही मानो शालू की ऊर्जा कई गुना बढ़ गई। फटाफट नाश्ते की टेबल पर चाय और पकौड़े ले आई। दोनों ने एक दूसरे को ऐसे देखा जैसे कह रहे हों,.. संभावनाएं अभी बाकी है,...।

प्रीति सुराना

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