सीने में तेज़ सा दर्द उठा अचानक पसीने से लथपथ तनुजा वहीं पास रखी कुर्सी पर धम्म से बैठ गई। पास ही काम करती शक्कु बाई घबराकर पड़ोस के शर्मा जी की पत्नी को बुला लाई। मिसेस शर्मा और उनकी बहू ने पडोसी धर्म निभाते हुए तनुजा को सिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया। डॉ ने कहा दिल का दौरा पड़ा है इनके परिवार में से किसी को बुला लीजिये।
मिसेस शर्मा के पास तनुजा के पति का मोबाइल नंबर ही नहीं था। तनूजा के फोन पर अरुण के नाम से तलाश किया, उन्हें आश्चर्य हुआ कोई नंबर नहीं था। फिर कॉल डिटेल में देखा, वंदना की तबीयत बिगड़ने के 10 मिनट पहले 'दर्द' नाम के किसी नंबर पर 3 बार कॉल किया था उसने। उत्सुकतावश उसने उसी नम्बर पर उसी के फोन से कॉल कर लिया। तीसरी बार घंटी जाने से पहले ही लगभग चीखती हुई सी आवाज़ आई "तुम्हे कहा था न की फोन करके परेशान मत करो मेरा एक एक मिनट कीमती है", और फोन कट गया। आवाज़ अरुण की थी पहचानने में कोई गलती नहीं हुई क्योंकि अकसर ये आवाज़ें तनुजा के घर की दीवार से होकर उन तक पहुँचती है। जैसे तैसे खुद को संभाला तभी तनुजा को होश आने लगा वो डॉ को बुलाने के लिए मुड़ ही रही थी कि तनुजा ने उनका हाथ थाम लिया और लड़खड़ाती जुबान से कहा "बातों की चुभन, सूनी कोख और अकेलापन सालता है , सोने के पिंजरे में बिना प्रेम दम घुटता है मेरा, अब 'दर्द' के साथ जीना नहीं होगा मुझसे।" शर्मा जी की बहु के साथ डॉ कमरे में आए ही थे की तनुजा ने दम तोड़ दिया।
मिसेस शर्मा को अचानक तनुजा के पिता का चेहरा याद आया जो पिछली बार जाते हुए दरवाजे पर कहकर गए थे "सोन चिरैय्या अब नातियों का मुंह और दिखा दे 4 साल हो गए इस इंतज़ार में अगली बार आऊं तो अपने नाती को गोद में खिलाकर ही जाऊंगा"।
वो सोच में थी 'दर्द' को फिर फोन कैसे करे ? नहीं उठाया तो? कुछ सोचकर अपने फोन से अरुण का नंबर डायल किया और फोन उठते ही कहा "सोनचिरैय्या तो उड़ गई अब दर्द किसे दोगे?"
पता नहीं उसकी बात अरुण ने सुनी भी या नहीं और फोन काट दिया।
अगले ही पल तनुजा के फोन पर 'दर्द' की घंटी बजी । स्तब्ध हो सास-बहू सोचने लगी क्या अरुण को तनुजा का दर्द पता था??
प्रीति सुराना
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