Monday 20 March 2017

पागलपन

घाव मिला जब भी कोई ,ये मन हँसकर टाल गया।
मेरा ये पागलपन ही, इस दुनिया को साल गया।।

मैं चुप ही रह लेती हूं , लोगों की सुनकर बातें।
मुझको अकसर अपनों से, दर्द की मिलती सौगातें।
रुक कर पलकों पर आंसू, आदत अपनी डाल गया।
घाव मिला जब भी कोई ,ये मन हँसकर टाल गया।
मेरा ये पागलपन ही, इस दुनिया को साल गया।।

कदम बढ़े आगे जब भी,सबने बीच डगर रोका।
जो शामिल न रहा गम में, उसने खुशियों को रोका।
इन बिन मोल झमेलों में,अनमोल अनूठा काल गया।
घाव मिला जब भी कोई ,ये मन हँसकर टाल गया।
मेरा ये पागलपन ही, इस दुनिया को साल गया।।

रीतेपन में जीवन के,रंग अलग से भर लेती।
सपने अपने अपनों के, जुटकर पूरे कर लेती।
भाग्य मगर चकमा देकर,सूनापन सा ढाल गया।
घाव मिला जब भी कोई ,ये मन हँसकर टाल गया।
मेरा ये पागलपन ही, इस दुनिया को साल गया।।

टूटे कुछ सपने मेरे,मन के आंगन में बिखरे।
जितना टूटे जीवन में, उतना ही फिर से निखरे।
आशाओं का एक दीया,अरमानों को पाल गया।
घाव मिला जब भी कोई ,ये मन हँसकर टाल गया।
मेरा ये पागलपन ही, इस दुनिया को साल गया।।

प्रीति सुराना

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