चलो न साथ कुछ पल
लौट कर चलते हैं
कुछ दूर अतीत में,..
फिर से जीते है
वो कुछ पल
जो बहुत प्यारे थे,..
जब मेरा तुनकना
मेरी अदा लगता था
मेरी गलती नहीं,..
हमारे झगड़े
नोकझोक से लगते थे
कोई गलतफहमी नहीं,..
मेरी छोटी सी चोट
तुम्हारे लिए मुझसे ज्यादा
पीड़ादायक होती थी,..
तुम्हारी जरा सी नाराजगी
मेरे लिए मौत से भी बड़ी
सज़ा हुआ करती थी,...
जाने क्यों आजकल
सब कुछ
उलटा पुलटा सा है,..
एक दूसरे को सज़ा
देने के लिए
बेवजह नाराजगी,..
जख्मों को
नजरअंदाज कर
फिर कोई नई चोट देना,..
एक दूसरे की तकलीफ
असहनीय पीड़ा तो
अब भी देती है हमें,..
पर जाने क्यों अब
इजहार और इकरार की बातें
बचपने सी लगती है,..
नोकझोंक
कब झगडे में बदल जाती है
पता ही नहीं चलता,..
चलो न फिर से
अतीत के उन लम्हों में
जब हम प्यार करते थे,..
पर सुनो!!
इस बार हम
जब वापस अपने घर लौटेंगे
रास्ते के कुछ पड़ाव जरूर बदल देंगे,..
वो सारे पड़ाव
जिसने बढ़ाई दूरियां
हम दोनों के दरमियान,..
चलो न साथ कुछ पल,... प्रीति सुराना
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