Tuesday, 14 February 2017

जीना है तो जीना है

चलते चलते मुझको सबसे
बस इतना ही कहना है,..
जब तक साँस लिखी है तब तक
जीना है तो जीना है,..

चाहे न कटे ये दिन सुख से
मैं हरदम बेचैन रहूं,
कहने को बात बहुत है पर
सोच रही हूं कुछ न कहूं,
पीड़ा अंतस को भेद रही
सहना है तो सहना है,..

जब तक साँस लिखी है तब तक
जीना है तो जीना है,..

साथ नहीं कोई पलभर भी
तनहा तनहा रहती हूं,
घुलती रहती हूँ मन ही मन
मैं भावों में बहती हूँ,
भीड़ रहे या सन्नाटा हो
रहना है तो रहना है,...

जब तक साँस लिखी है तब तक
जीना है तो जीना है,..

लोगों में खुशियां बाँट सकूँ
ये हसरत मेरे मन में रही,
बदले में पीर मिली हरदम
वो भी मैंने चुपचाप सही,
आँखों से आंसू हर पल में
बहना है तो बहना है,..

जब तक साँस लिखी है तब तक
जीना है तो जीना है,..
चलते चलते मुझको सबसे
बस इतना ही कहना है,...
प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2594 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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