दोनों ने
किया था वादा
हमेशा साथ साथ चलने का,
फिर
मैंने किया भरोसा
और चलती रही आंखें मूंदे
प्रेम के अंधत्व में,
एक ठोकर लगी
किसी ने संभाला नहीं
गिर पड़ी
तब आंखें खुली तो देखा,
हमसफ़र अब भी चल तो रहा था
उसी गति से
पर जाने कब मुझसे मुंह फेर गया
पता ही न चला।
ख़ुश हूं
वो गतिमान है अब भी
अपनी चुनी दिशा में,..
मगर मैं स्तब्ध हो
थम गई वहीं
जहाँ से उसने मुंह मोड़ लिया,..
हां!!!
बुरी हूं मैं
रूककर
मैंने
वादा तोड़ दिया,...
अब कैसे कहूं???
*Happy Promise Day*
प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत सुन्दर है। हम चाहते हैं की आपकी इस पोस्ट को ओर भी लोग पढे । इसलिए आपकी पोस्ट को "पाँच लिंको का आनंद पर लिंक कर रहे है आप भी कल रविवार 12 फरवरी 2017 को ब्लाग पर जरूर पधारे ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 फरवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
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