Thursday, 5 January 2017

रातों का सूनापन

2*11
इंतजार अब मन के हर कोने को है ,
कितना कुछ हर पल पाने खोने को है ।।

यादों के मौसम भी अब तो बीत चले,
मन का आँगन सावन सा होने को है ।।

हमदम बनकर आया कोई मन बसने,
अब खुशियों की बरसात भिगोने को है ।

मिट जाएगा अब रातों का सूनापन,
अब कोई सँग सँग हँसने रोने को है ।।

सपना इन जागी आँखो का सच होगा,
बोझिल सी पलकें मेरी सोने को है ।।

प्रीति सुराना

2 comments: