Saturday, 31 December 2016

समीक्षा हो तो,..

हां!
मैं लिखती हूं
विषयों पर,..
बिना इस अपेक्षा के
कि
कोई वाह करे
या
आह भरे,..
बात दिल तक पहुंचे तो
आह या वाह मिले
समीक्षा हो
तो लेखनी में
सुधार हो,
पर न भी हो तो भी
रचनाकार हूं
रचती हूं
भावों को शब्दों में
विषयानुसार
ताकि मेरी कलम रुके नहीं,..
और
जितना घिसुं उतनी ही पैनी हो
मेरी कलम की धार,..
हे शारदे तुम मुझपर
करना बस इतना उपकार,
भावनाओं की सभी का
सम्मान हो मन में सदा,
मेरी लेखनी से घात न हो
न हो शब्दों से प्रहार,
मन की बात लिखती रहूं
चाहता है प्रतिपल मन
*प्रतीक्षा* मन की शांति की है
मिले हो हो धन्य जीवन,...प्रीति सुराना

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