Saturday 31 December 2016

मौजूदगी

सुनो!
अब तक
मैं भी अनजान रही
कि
मन में उठते
जिन भावों को
अकसर शब्दों में ढाला है
'तुम्हे' संबोधित करके
ये सवाल
सालता रहा
हमेशा
जाने तुम कौन हो?
'तुम'
हो भी या नहीं
जो दे सको कभी आकार
मेरे सपनों को
भर सके रंग मेरे जीवन में,..
पर
अचानक
एक अहसास
तुम्हारी मौजूदगी का,
मन को उत्तर देता हुआ सा
मानो कह रहा हो
धड़कन का कोई नाम होता है भला
अगर होता है
तो धड़कन का नाम होता 'जीवन'
हां
अब मिल गया
उत्तर
कौन है वो
जो मेरी धड़कनों में बसा हो
एहसास बनकर
जो मेरे जिस्म में बसा है
साँस बनकर
जो रूह में बसा हो
प्राण बनकर
मेरा जीवन
सिर्फ तुम,..
तुम ही रहोंगे
जिस्म से रूह के अलग होने तक
साँस और धड़कन बनकर मेरे साथ
यक़ीनन
'सिर्फ तुम'

प्रीति सुराना

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