विष्णुपद छंद पर
16 10 अंतिम गुरु
एक गीत का प्रयास
जी करता अब जी भर जी लूँ,
साथ मिला तेरा ।
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे,
कहता मन मेरा।।
अंतस पर घनघोर घटा के
मौसम आए थे,
उमड़ घुमड़ दहशत के बादल
नभ पर छाए थे,
बिखरे बिखरे मन को मेरे
गम ने था घेरा।
जी करता अब जी भर जी लूँ,
साथ मिला तेरा
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे,
कहता मन मेरा।।
आज सजाये सपने फिर से
सोच नई पाई,
छोड़ निराशा की बातों को
नव आशा लाई,
मिट जाए अब गहन अंधेरे
हो नया सवेरा,
जी करता अब जी भर जी लूँ
साथ मिला तेरा।
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे
कहता मन मेरा।।
पथ में कांटे बहुत बिछे थे
डर के थे साये,
महका मेरे मन का उपवन
फूल तुम्ही लाये,
फिर से मेरे मन आंगन में
खुशियों का डेरा,
जी करता अब जी भर जी लूँ
साथ मिला तेरा।
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे
कहता मन मेरा।।
प्रीति सुराना
सुन्दर ।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8 - 12- 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2550 में दिया जाएगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद
Deleteउम्दा रचना भावों की साफ सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुंदर गीत ..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन !
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