सब साथी हैं मतलब के,बिन मतलब कब कौन मिला।
किस्मत ही जब बैरन हो,संबंधों से फिर कैसा गिला।
बचपन था जब खेल खिलाता
बात बात में पाठ सिखाता,
नींद बहुत मीठी आती तब
सपने भी मीठे दिखलाता,
जैसे जैसे बड़े हुए हम
सच के कांटों पर फूल खिला,..
सब साथी हैं मतलब के,बिन मतलब कब कौन मिला।
किस्मत ही जब बैरन हो,संबंधों से फिर कैसा गिला.।
यौवन के सब सपने रंगीन
हर पहलू लगता था हसीन,
तब नातों के ताने बाने का
हर धागा था बड़ा ही महीन,
नाजुक नेह के धागों से था
हर रिश्ता नाजों से सिला..
सब साथी हैं मतलब के,बिन मतलब कब कौन मिला।
किस्मत ही जब बैरन हो,संबंधों से फिर कैसा गिला।
रिश्तों को दुनिया कहने वालों
रिश्तों की दुनिया गोल नहीं
अब जीवन उस मोड़ पर है
जब भावों का कोई मोल नहीं,
मैंने सर्वस्व दिया रिश्तों को
कोई एक अपना नही मिला,..
सब साथी हैं मतलब के,बिन मतलब कब कौन मिला
किस्मत ही जब बैरन हो,संबंधों से फिर कैसा गिला
दर्द ख़ुशी और धूप छांव
सब आते जाते रहते हैं,
हरदम तेरे साथ रहेंगे
कुछ अपने ये भी कहते है,
मैंने खुदको पाया तनहा
जब जब पीड़ा का शूल खिला,..
सब साथी हैं मतलब के,बिन मतलब कब कौन मिला।
किस्मत ही जब बैरन हो,संबंधों से फिर कैसा गिला।
बहुत सुन्दर ।
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