बहर : 1222*4
बिना रदीफ़
कफिया : ओगे
खता क्या थी सजा क्यूं दी हमें ये तो बताओगे,
वजह जो भी रही हो और अब कितना रुलाओगे?
बड़ा कमजोर है ये दिल हमारा तुम समझ लेना
बिना समझे हमें ऐसे कहां तक आजमाओगे
जहां में बेसबब यारा कभी कुछ भी नहीं होता
सबब कोई बताए बिन हमें कितना सताओगे?
तुम्हारा फैसला ही काश अंतिम फैसला होता,
लिखा तक़दीर में जो है उसे कैसे मिटाओगे?
रही है 'प्रीत' की फितरत हमेशा ही तड़पने की,
समझकर राह का रोड़ा हमें इक दिन हटाओगे,.. प्रीति सुराना
सुन्दर ।
ReplyDelete