Thursday, 10 November 2016

साथ मेरे गुनगुनाओगे


कभी इक बार फिर से साथ मेरे गुनगुनाओगे,
अधूरी रह गई जो धुन उसी पर गीत गाओगे।

कभी सोचा नहीं इतना कठिन जीवन सफर होगा,
वही फिर याद आएगा जिसे ज्यादा भुलाओगे।

बहाने रोज करते हो नजर मुझसे चुराते हो,
नहीं लगता मुझे ऐसा कभी तुम पास आओगे।

रही दिल में हमेशा ये कसक सी आज तक मेरे,
जताओगे कभी तुम प्रेम या यूं ही छुपाओगे।

चलो फिर साथ चलते है वहां यादें जहां छूटी,
करुं कैसे भरोसा चाहतें मुझसे निभाओगे।

समझना ही न चाहे दिल भला टोके इसे कैसे,
बहेगी प्रीत की नदियां नही तुम रोक पाओगे।

रही मैं प्रेम की प्यासी कभी कुछ और कब मांगा,
कभी तुम :प्रीत' दोगे या सदा यूं ही सताओगे।
प्रीति सुराना

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