Saturday 15 October 2016

कोई खुशी नाराज़

दस्तक दे रहा है दर्द
कोई दिल पर आज,
लगता है फिर से हुई
कोई खुशी नाराज़।

सोचती हूं हर बार न
होठों पर हंसी आए,
कोई न इस तरह से
यूं मुझे नज़र लगाए,
गुलशन पर मेरे कोई
फिर गिरा गया है गाज़,
लगता है फिर से हुई
कोई खुशी नाराज़

दस्तक दे रहा है दर्द
कोई दिल पर आज।

सोचा न था मैं कभी
गाऊंगी प्रेम धुन,
मिला दिए सुर में सुर
गीत तेरे सुन,
वक्त ने छेड़ दिया
कैसा गम का साज,
लगता है फिर से हुई
कोई खुशी नाराज़,

दस्तक दे रहा है दर्द
कोई दिल पर आज।

दांव पेंच आते नहीं थे
मैं तो थी नादान,
भरोसा सब पर किया
अपना उन्हें मान,
था कौन छुपा अपनों में
गैर ये भी है राज़,
लगता है फिर से हुई
कोई खुशी नाराज़,

दस्तक दे रहा है दर्द
कोई दिल पर आज। ,.. प्रीति सुराना


4 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 16 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... पांच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    सादर
    ज्ञान द्रष्टा

    ReplyDelete