Friday, 14 October 2016

कुछ भी नहीं था मुझमें,.

परत दर परत खोलते रहे,..
वो "मेरा मन"
कुछ भी नहीं था मुझमें ,.
प्यार के सिवा,....

हर्फ़ दर हर्फ़ टटोलते रहे,.
वो "मेरा मन"
कुछ भी नहीं था मुझमें,.
दर्द के सिवा,....

सांस दर सांस महसूसते रहे,.
वो "मेरा मन"
कुछ भी नहीं था मुझमें,.
घुटन के सिवा ,....

धड़कन दर धड़कन सुनते रहे,.
वो "मेरा मन"
कुछ भी नहीं था मुझमें,.
तड़प के सिवा ,.....

लम्हा दर लम्हा कुरेदते रहे,.
वो "मेरा मन"
कुछ भी नहीं था मुझमें,.
ज़ख्मों के सिवा ,...प्रीति सुराना

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