मनचाहा कम ही मिलता है,
जो पाया है वो सहता चल,..
कुछ अच्छा ही होगा कल,
समय के साथ बहता चल,..
खेल बहुत खेले बचपन में
रेत के महल बनाने के,
गुड्डे गुड़िया का ब्याह किया
खुश होने के बहुत बहाने थे,
लौट नहीं सकते वो पल
समय के साथ बहता चल,..
कुछ अच्छा ही होगा कल,..
छुटपन में सपने देख हम
नींद में भी मुसकाते थे,
जागते ही कुछ सपने तो
मां पापा से पूरे हो जाते थे,
अब सपनें भी करते हैं छल
समय के साथ बहता चल,..
कुछ अच्छा ही होगा कल,..
कर्तव्य निभाएं या न निभाएं
अधिकारों की खातिर लड़ते है,
अपनों से अपनापन न हो
गैरों की झंझट में पड़ते हैं,
फिर कैसे हो जीवन सरल
समय के साथ बहता चल,..
कुछ अच्छा ही होगा कल
नेह के बंधन में न बंधना
टूटकर जो पीड़ा देते हैं,
न किसी से बैर ही रखना
सुख सारे जो मिटा देते हैं,
कर्मों का ही मिलता है फल
समय के साथ बहता चल
कुछ अच्छा ही होगा कल,..
मनचाहा कम ही मिलता है
जो पाया है वो सहता चल,....प्रीति सुराना
सकारात्मक सोच लिए सहज कविता अच्छी लगी
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