Wednesday, 5 October 2016

'मन, तू मत रोया कर'

'मन, तू मत रोया कर'


बात बात में पलकें अपनी 

नहीं भिगोया कर।

छोटी छोटी बातों में 'मन' 

तू मत रोया कर।


माना सर्वस्व दिया है तूने 

जीवन में अपनों को,

रिश्तों की खातिर खोया है 

तूने कुछ सपनों को,

सोच जरा क्या तुझको 

कोई भी सुख मिला नहीं,

कोई धूप का टुकड़ा क्या 

तेरे आंगन में खिला नहीं,

करके याद हमेशा दुख ही 

सुख मत खोया कर,

छोटी छोटी बातों में 'मन' 

तू मत रोया कर।


है लोग बहुत दुनिया में ऐसे 

जिनको कुछ भी नहीं मिला,

लेकिन हंसते ही रहते वो

जीवन से उनको नहीं गिला,

तुम्हे भूख नहीं लगती पर 

रोटी को कोई तरसता है,

धरती पर जब सूखा पड़ता है 

आंखों से मेह बरसता है,

अपनों के बीच में रहकर भी 

तनहाई मत ढोया कर,

छोटी छोटी बातों में 'मन' 

तू मत रोया कर।


अकसर सुनते आए हैं हम 

जो बोएंगे वो काटेंगे,

जो भी होगा पास हमारे 

वो ही दुनिया को बाटेंगे,

कर्मग्रंथ कहते हैं ये

हर कर्म का फल मिल जाता है,

सबका अलग-अलग ही होता 

अपने कर्मों का खाता है,

अपने कर्मों से किस्मत में 

दुख मत बोया कर,

छोटी छोटी बातों में 'मन' 

तू मत रोया कर।


बात बात में पलकें अपनी 

नहीं भिगोया कर।

छोटी छोटी बातों में 'मन' 

तू मत रोया कर। 

प्रीति सुराना

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