Sunday 2 October 2016

सुधियों का विलाप

मेरी सुधियों का विलाप सुनो
मन खाली खाली लगता है,..

जब सब बिखरा बिखरा सा था
मैंने सबको खूब संभाला
जिसने मुझसे जो भी मांगा
बिन सोचे सबकुछ दे डाला
आज नहीं कुछ पास मेरे
बिन अपनों के यूं लगता है
मेरी सुधियों का विलाप सुनो
मन खाली खाली लगता है,..

पलपल सबकी खुशियों का
जरिया मैं बनती ही रही
सबके दिल का हाल सुना
अपने दिल की कभी न कही
आज जो कह न पाई मन की
कोई गुबार उठेगा लगता है
मेरी सुधियों का विलाप सुनो
मन खाली खाली लगता है,...

खैर छोड़ो अब जाने भी दो
जिसका जो था वो ले गया
कैसे कह दूं मतलबी सबको
मतलब से ही है रिश्तों का जहां
बिन मतलब के रिश्ते केवल
किताबों में रहते हैं लगता है
मेरी सुधियों का विलाप सुनो
मन खाली खाली लगता है,.... प्रीति सुराना

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