Sunday, 2 October 2016

तुम आओ तो,,..

कैसे काटूं सूनी रतियां तुम बिन ये बतलाओ तो,
अब की बार न जाने दूंगी लौट जरा तुम आओ तो।

माना सरहद पार पड़ोसी हमसे रूठा रहता है,
मैं भी रूठी हक़ से तुमसे मुझको इक बार मनाओ तो।

लाल हिना का रंग छूटा तुम उससे पहले छोड़ गए,
आकर अपने हाथों से अब चूड़ी तुम पहनाओ तो।

भारत के वीर सिपाही तुम सरहद के रखवाले,
ये घर मुझ विरहन की हद है मुझसे मिलने आओ तो।

जानूं दर्द तेरा घर मैंने भी बाबुल का छोड़ा है,
मैंने प्रीत निभाई लेकिन तुम भी रीत निभाओ तो।
प्रीति सुराना

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