Wednesday 12 October 2016

एकांत

सुनो!!!

मैं जूझती रहती हूं
अकसर
एकांत में
अपने एकाकीपन से,..

कभी एक और एक दो
कभी एक और एक ग्यारह
और कभी एक में से एक गया शून्य
ऐसे सवालों को हल करने की कोशिश में,..

ये सारे सवाल जेहन में
कुचालें भरते हैं हर पल
जिंदगी के गणित में ये समीकरण
मुझसे कभी सुलझे ही नहीं,...

पूरी ईमानदारी से मेहनत
और तमाम कोशिशों के बाद भी
मुझे मुझमें मुझ एक के सिवा
कुछ न मिला,...

मेरे हर सवाल का जवाब
मैं
मेरा एकांत
मेरा एकाकीपन,..


और

यही मेरा

सबसे बड़ा संबल

'हमेशा-हमेशा' ,.. प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment