अक्षर अक्षर लिखते पीर,..
कैसे बंधाऊं खुद को धीर,..
सुधियों को कैसे बिसाराऊं
टीस हृदय की याद दिलाए,
कैसे भूलूं उन घावों को
जो अपनों ने ही लगाए,
कैसे बंधाऊं खुद को धीर
अक्षर अक्षर लिखते पीर,
कैसे बंधाऊं खुद को धीर,..
पल पल डोले मन की नैय्या
कोई नहीं है इसका खिवैय्या,
तपती धूप से जल गए सपने
ढूंढते ढूंढते शीतल छैंय्या,
मन की आस अब ढूंढे तीर
अक्षर अक्षर लिखते पीर,
कैसे बंधाऊं खुद को धीर,..
जीवन तूने बहुत संभाला
घूंट घूंट पी गम की हाला,
फूंक फूंक कर राहत दे दे
सूखेगा फिर हर इक छाला,
बदलेगी हाथों की लकीर
अक्षर अक्षर लिखते पीर,
कैसे बंधाऊं खुद को धीर,.. प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर
ReplyDelete