हां!
गर्व है मुझे
मैं स्त्री हूं,..
स्त्री सृजन करती है
अपने समर्पण से अपने परिवार का,
स्त्री सृजन करती है
अपने व्यवहार से अपने परिवेश का,
स्त्री सृजन करती है
अपने बलिदान से समाज का,
स्त्री सृजन करती है
अपने अंश से अपने वंश का,
स्त्री सृजन करती है
अपने ही आत्मबल से अपने अस्तित्व का,
स्त्री सृजन करती है
अपने शब्दों से अभिव्यक्ति का,
वसुधा, प्रकृति, नियति,
संस्कृति, समृद्धि, शक्ति,
रिद्धि, सिद्धि, बुद्धि,
हर रूप में
सृजन के संपूर्ण दायित्व का
निर्वाह करती है स्त्री,..
कैसे मान लूं मैं खुद को अबला
जबकि मुझे पता है स्त्री के गुणधर्म
विधाता ने सृजन का दायित्व
स्त्री को यूंही नहीं सौपा,.
आज तो सिर्फ बीज रोंपा है
यक़ीनन फल मिलेगा,..
तभी तो
आज कर पाई हूं मैं
स्त्री के मनोभावों को
शब्द रूप में अभिव्यक्त करने की
शक्ति को प्रेरित
और
'शब्द-शक्ति का सृजन' ,... प्रीति सुराना
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