Tuesday, 2 August 2016

शक के सैलाब में,..

पीर उठी मेरे दिल में जब वह गया।
जाते जाते जाने क्या क्या कह गया।

था अरमानो का गुलशन दिल में सजा,
सुनकर मतलब की बातें सब ढह गया।

छुपकर झूठी मुसकानों की ओट में,
सह सकता था उतना तो दिल सह गया।

सब कुछ डूब गया शक के सैलाब में,
पर जो डूब न पाया वो भी बह गया।

यूं तो उजड़ गई दुनिया ही 'प्रीत' की,
फिर भी मुझमें बस बाक़ी वो रह गया,.. प्रीति सुराना

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