बात हो अधिकार की,
या नारी के सम्मान की,
भेद सारे भूलकर,
भाग लिख दीजिये।
शक्ति का हो रूप जब,
धरे चंडी रूप तब,
बुराई की विनाशिका,
आग लिख दीजिये।
सोलह श्रृंगार करे,
जब रति रूप धरे,
साज छेड़ प्रीत भरा,
राग लिख दीजिये।
प्रेम और ममता की,
प्रतिमूर्ति समता की,
परिभाषा नारी की,
त्याग लिख दीजिये। ,...प्रीति सुराना
अति सुंदर
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।