Thursday, 9 June 2016

नहीं होती जिंदगी बसर तन्हा

नहीं होती जिंदगी बसर तन्हा,
काटना मुश्किल है ये सफ़र तन्हा।

हर मोड़ पर मुश्किलें मौजूद है,
कैसे सहे कोई ये कहर तन्हा।

हर घूंट में पीये है आंसू हमने,
पीयें कब तक दर्द का ज़हर तन्हा।

तलाशती है नज़रें भीड़ में तुम्हें,
कभी तो मिलाओ हमसे नज़र तन्हा।

यूं तो समंदर में मिली हज़ारों नदियां,
पर लगे ख़ामोश सी हर लहर तन्हा।

रात गुजारी है करवटें बदलते हुए,
क्या पता होगी कैसी सहर तन्हा।

इश्क के तौर तरीके अज़ब हैं 'प्रीत',
है दुनिया में यादों का शहर तन्हा।
प्रीति सुराना

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